वैदिक काल
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हम इस आर्टिकल में आप सभी को वैदिक काल नोट्स का कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे जो आपके वैदिक काल नोट्स के general knowledge सीखने और याद करने में मदद करेगी | इस वैदिक काल नोट्स में किसी भी प्रकार की लिखावट मे गलती या प्रश्न उत्तर में गलती होने पे हमें खेद होगी अतः उस गलती को कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताये | धन्यवाद
सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे SSC, IBPS Clerk, IBPS PO, RBI, RRB, CTET, TET, BED, UPSC इत्यादि में वैदिक काल नोट्स से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। यहाँ वैदिक काल नोट्स के सभी महत्वपूर्ण जानकारी को Listed किया गया है जो वैदिक काल नोट्स संबंधित जानकारी बढ़ाने में उपयोगी हो सकती है।
वैदिक काल का विभाजन दो भागों मे किया गया है –
1 पूर्व वैदिक काल या रिगवैदिक काल 1500-1000 ई.पू.
2 उत्तर वैदिक काल या ब्राह्मण साहित्य काल1000-600 ई.पू.
वेद विद धातु से बना है, जिसका अर्थ है “ज्ञान”
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात एक नवीन संस्कृति का उदय हुआ, जो अपनी पूर्ववर्ती सभ्यता से काफी भिन्न थी।
इस संस्कृति के संस्थापक “आर्य” थे ।
आर्य शब्द का शाब्दिक अर्थ – अभिजात्य, श्रेष्ठ, उत्तम, कुलीन एवं उत्कृष्ट होता है।
मैक्स मूलर के अनुसार भारत में आर्यों का आगमन 1500 पूर्व के आसपास हुआ जो कि सर्वाधिक स्वीकृत मत है ।
वैदिक काल को जानने के लिए वैदिक साहित्य –
वैदिक धर्म ग्रंथ को ब्राह्मण धर्म ग्रंथ भी कहा जाता है।
संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण है ।
वेद (वैदिक काल नोट्स)
वेद को विश्व में प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है ।
वेद का अर्थ “ज्ञान’ है ।
वेद को चार प्रकार के होते हैं_
1. ऋग्वेद
2. यजुर्वेद
3. सामवेद
4. अथर्ववेद
ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद इन तीनों के संग्रह को देवत्रयी कहा जाता है ।
चारों वेदों को संहिता कहा जाता है।
ऋग्वेद
मूल लिपि ब्राम्ही व संस्कृत भाषा थी ।
इसमें 10 मंडल और 1028 सूक्तियां एवं 10580 श्लोक मंत्र है।
ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 और अग्नि के लिए दोसा इस श्लोक की रचना की गई है ।
शक्तियों के रचयिता विश्वामित्र, वशिष्ठ और लोपामुद्र ।
ऋग्वेद की प्रथम रचना अग्नि देवता को समर्पित है ।
द्वितीय सातवा प्राचीनतम एवं पहला वह दसवा नवीनतम खंड है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल (रचिता विश्वामित्र )में गायत्री मंत्र सावित्री का उल्लेख है ।
नवी मंडल में सोमदेव का उल्लेख है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में पुरुष सूक्त के सर्वप्रथम शुद्ध शब्द व चार वर्णों का उल्लेख है ।
ऋग्वेद से हमें आर्यों की जीवन की राजनैतिक व सांस्कृतिक जीवन के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
ऋग्वेद और जेवा भेजता या ईरानी ग्रंथ में समानता पाई जाती है ।
ऋग्वेद के पढ़ने वाले को होता कहते हैं ।
सर्वप्रथम स्तूप शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है।
ऋग्वेद के दाशराज्ञ युद्ध का वर्णन मिलता है ।
जिसमें भरत कबीले के राजा सुदास व पुरु काबिले के मध्य हुआ था। भारत कबीले जन के प्रमुख सुदास थे । जिनके मुख्य पुरोहित वशिष्ठ थी जबकि इसके विरोधी 10 जनों आगे बना रे के संग के प्रमुख पुरोहित विश्वामित्र थी भारतजन की नेता सुदस ने रावी नदी के तट पर 10 राजाओं के संग को पराजित किया था ।
रिंगदेव के अधिकांश भाग की रचना सप्तसैंधव प्रदेश में हुई है ।
ऋग्वेद की कुल 5 शाखाएं हैं- शाकाल, वाष्कल, आश्ववायन, शारवायन, मांडूकायल जिसमें दो शाखाएं मान्य है – शाकाल, वाष्कल,
रिंगवेद जैन तीर्थ कल का उल्लेख रिंगवेद में आया है
यजुर्वेद
इस वेद में हमें यज्ञ कर्मकांड के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
यजुष शब्द का अर्थ यज्ञ ।
आंशिक रूप से गद्य में में है
यजुर्वेद दो भागों में विभाजित है –
1. शुक्ल यजुर्वेद
2. दूसरा कृष्ण यजुर्वेद
यजुर्वेद से आर्यो की धार्मिक व सामाजिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है ।
यजुर्वेद को रहने वाला पुरोहित अधयुर्य है ।
40 मंडल वह 2000 मंत्र है ।
इसमें कृषि सिंचाई की प्रविधियां चावल की किसमे ,शील आदि का उल्लेख है।
सामवेद
साम शब्द का अर्थ “गान”
सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता है।
मुख्य रुप से यह वेद संगीत से संबंधित है ( भारतीय संगीत की जननी )
सामवेद में कुल 1875 रचनाएं हैं जिसमें 75 के अतिरिक्त शेष ऋग्वेद से लिया गया है
इसके वाचनकरता को उदगाता कहते हैं ।
यह वेद पद्य में है ।
अर्थवेद (वैदिक काल नोट्स)
इसमें हमें ब्रम्हज्ञान, औषिधि प्रयोग, टोना टोटका के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
इसने सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय आयुर्विज्ञान है ।
यह सबसे वेद है रचियता-अथर्वण
तथा आगिड़रस, अर्थवेद, ब्रम्ह्वेद, महीवेद
इसमें 20 काण्ड 730 सूक्त एवं 5887 मंत्र है ।
अर्थ वेद को पढ़ने वाला पुरोहित “ब्रम्हा” है ।
अर्थवेद को अनार्यो द्वारा रचित माना जाता है
दो भाग पिप्लाद वह शौनक सभा व समिति को प्रजापति की 2 पुत्रियां कहां गया है ।
इस वेद में मंत्र तंत्र, वशीकरण प्रेम, आशीर्वाद, स्तुति, विवाह, औषधि, अनुसंधान, मातृभूमि महात्म्य संबंधित विश्वास और अंधविश्वास का वर्णन किया गया है ।
ब्राम्हण साहित्य 800-600 ई.पू.
विषय – यज्ञ , पूजा पाठ एवम कर्मकांड
यज्ञ व कर्मकांड के विधान एवं इसकी क्रियाओं को भलीभांति समझने के लिए ब्राम्हण ग्रंथ की रचना हुई ।
प्रत्येक वेद के अपने-अपने ब्राम्हण ग्रंथ होते हैं-
ऋग्वेद : ऐतरेय कौषितकी
यजुर्वेद : 1शुक्ल यजुर्वेद -शतपथ ( ब्राम्हण ग्रंथों में सबसे प्राचीन )
2 कृष्ण यजुर्वेद -तैत्तिरीय (मनुष्य आ आचारण देवों के समान होना चाहिए मन ही सर्वोच्च प्रजापति)
सामवेद : पंचविडड,षङविद्द्य, जैमिनी, तांडव
अर्थवेद : गोपथ (ऊँकार तथा गायत्री की महिमा का वर्णन के कैवेल्य की अवधारणा का उल्लेख है।)
आरण्यक
इसने दार्शनिक एवं राशि आत्मा को विश्व जैसे आप मंडे क्यों जीवन आधी विश्व का वर्णन है।
इस ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थत वन में किया जाता था इसलिए इन ग्रंथों का नाम आरण्यक पड़ा ।
ब्राम्हणों का अंतिम भाग है
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उपनिषद 800 -500 ई.पू.
अर्थ -:समीप पास बैठना” (गुरु के समीप ज्ञान के लिए बैठना)
उपनिषद वैदिक साहित्य के अंतिम भाग व सारभूत सिद्धांतो का प्रतिपादक है । इस कारण इसे वेदांता वेदो का अंतिम भाग भी कहा जाता है।
उपनिषद की रचना उत्तम वैदिक काल में हुई है
उपनिषद की कुल संख्या 108 है जिसने 13 को प्रमाणित माना गया है
भारत का प्रसिद्ध राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है, जिसने युद्ध की तुलना टूटना से की गई है ।
यह यह पद्य दोनों में हैं
उपनिषद में अर्थशास्त्र के तत्व पक्ष की तुलना में ज्ञान पक्ष पर सबसे अधिक जो दिया गया है जिसने आत्मा पर मात्मा एवं संचार के संदर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह है ।
ब्रह विषयक होने के कारण ब्रम्हविद्या भी कहा जाता है ।
इसमें कर्मकांड की आलोचना एवं सम्यक भी विश्वास ज्ञान के तत्वों पर जोड़ दिया गया है ।
वेदांत दर्शन का सार है ।
मोच मोक्षी चर्चा है
मुण्डकोपनिषद : सत्यमेव जयते
कठोपनिषद : यम नचिकेता संवाद
जांबलोपनिषद : चारों आश्रम ( ब्रम्हचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ और सन्यास का वर्णन )
छान्दोग्य उपनिषद : पुनर्जन्म का उल्लेख से
श्वेताशवर : इसका अर्थ सफेद घोड़ा
वेदांग (वैदिक काल नोट्स)
इसे वेदों का अंग माना गया है ।
अध्ययन में मदद करता है
कुल संख्या 6 होती है –
शिक्षा – वेद उच्चारण के मंत्रों की विधि
व्याकरण – वेदों के प्रयोजन जानने के शब्दों के यथार्थ ज्ञान के लिए रचना की गई है
ज्योतिष – यज्ञ काल के आश्रित होते ही रखना ज्योतिष शास्त्र से काल का ज्ञान होता है
कल्प- जिस मंत्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिए इसका उल्लेख है
निरुक्त-वेद में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग इन अर्थो में है उसका उल्लेख है
छंद – छन्दों की रचना का ज्ञान
नोट – वेदांत उपनिषद को कहते है
महाकाव्य
रामायण
रचनाकार – द्वितीय शताब्दी पूर्व
भाषा – संस्कृत
रचयिता – बाल्मिकी
कुल शलोक – 24000
महाभारत
रचनाकार द्वितीय -तृतीय शताब्दी
भाषा – संस्कृत
रचयिता – वेदव्यास
कुल शलोक – एक लाख
पर्व 18(18 पर्व में विभाजित) रामायण का अन्य -चतुविंशती
महाभारत -जयसंजय विजय संबंधी शतसाहस्ती संहिता |
श्रीमद्भागवत गीता महाभारत का अंश है जिसका मुख्य विषय निष्काम कर्म है |
पुराणा
5वी चौथी शताब्दी ईशा पूर्व
पुराणों को पंचम वेद माना गया है।
प्राचीन आख्यान से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं |
रचनाकार लोमहर्ष उसका पुत्र उग्रश्व |
रामायण पुराणों की कुल संख्या 18 होती है |
भागवत पुराण विभक्ति दर्शन को सारभूत किया गया है |
सबसे प्राचीन पुरानी एवं प्रामाणिक मत्स्य पुराण है |
पुराणों में ऐतिहासिक सूचना वंशानुचरित में मिलती है जिसमें राजाओं की वंशावली पाई जाती है |
विष्णु पुराण – मौर्य वंश (322 से 184 ई.पू.) का वर्णन मिलता है |
वायु पुराण – गुप्त वंश ( 4वी शताब्दी ईशा पूर्व ) का वर्णन मिलता है |
मत्स्य पुराण – सातवाहन वंश का वर्णन मिलता है |
अग्नि पुराण – तांत्रिक पद्धति का उल्लेख इसी में ही गणेश पूजा का प्रथम बार उल्लेख मिलता है
दर्शन
भारतीय दर्शन दो भागो विभाजित है –
पहला आर्थिक दर्शन
दूसरा नासिक दर्शन
1. सांख्य – कपिल
2. न्याय -गौतम
3. वैशेषिक – कणाद व उलूक
4. योग – पतंजलि
5. पूर्व मीमांस – जैमिनी
6. उत्तर मीमांस – वादरायण
नोट – अपूर्व का सिद्धांत मान से संबंधित है निम्न दर्शन कामत है वेद संबंधित है |
अश्वेत विधान के अनुसार जान के द्वारा मूवी पाई जा सकती है |
नव्य न्याय संप्रदाय के संस्थापक गंगेस है |
भारती संस्कृति के अंतर्गत ग्रुप का अर्थ प्राकृतिक नियम है |
चार्वाक एकमात्र भौतिकवादी दर्शन है
सर्वोच्च मूवीस काम अग्नि
साधन -अर्थ
उपवेद
प्रत्येक वेद के अपने-अपने उद्धव होते हैं –
ऋग्वेद : आयुर्वेद -प्रजापति (ब्रहमा)
सामवेद : गंधर्व (नारद)
यजुर्वेद : धनु ( विश्वामित्र)
अर्थवेद : शिल्पवेद (विश्वकर्मा)
सूत्र
प्राचीन भारतीय सभ्यता को कर्मकांड को पूरा करने की शिक्षा उल्लेखित है |
कम शब्दों से अधिक बार कहने का प्रयास |
चार सूत्र
1. कल्प सूत्र – कर्मकांड व् रीति -रिवाज
2. श्रौतसूत्र – महायज्ञ
3. गृह सूत्र – गृह संस्कार
4. धर्म सूत्र – धर्म या विधि
ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ
प्राचीन नाम – आधुनिक नाम
वितस्ता : झेलम
आस्किनी : चिनाब
परुष्णी : रावी
शतद्रि : सतलुज
विपाशा : व्यास
सदानीरा : गंडक
दृषद्वती : घग्घर
गोमती : गोमल
सुवास्तु : स्वात
सुषोमा : सोहन
मरुद्वृधा : मरुवर्मन
क्रुभु : कुर्रम
कुभा : काबुल
सरस्वती – ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदियों की अग्रवती, नदियों की माता, वाणी, प्रार्थना एवं कविता की देवी, बुद्धि को तीव्र करने वाली और संगीत प्रेरणादायी कहा गया है। सरस्वती ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी मानी जाती थी। इसे नदीतमा (नदियों की माता) कहा गया। सरस्वती जो अब राजस्थान की रेगिस्तान में विलीन हो गई है। इसकी जगह अब घग्घर नदी बहती है।
दृषद्वती -(आधुनिक चितंग अथवा घग्घर) यह सिन्धु समूल की नदी नहीं थी।
आपया – यह दृषद्वती एवं सरस्वती नदी के बीच में बहती थी।
सरयू – यह गंगा की सहायक नदी थी। ऋग्वेद के अनुसार संभवतः यदु एवं तुर्वस के द्वारा चित्ररथ और अर्ण सरयू नदी के किनारे ही पराजित किए गए थे।
यमुना – ऋग्वेद में यमुना की चर्चा तीन बार की गयी हैं।
गंगा – गंगा का उल्लेख ऋग्वेद में एक ही बार हुआ है। नदी सूक्त की अन्तिम नदी गोमती है।